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॥ अथ श्रीत्रिपुरसुन्दरीचक्रराज स्तोत्रं ॥
The graphic was carved from Kasti stone, a uncommon reddish-black finely grained stone accustomed to fashion sacred visuals. It was brought from Chittagong in existing working day Bangladesh.
आर्त-त्राण-परायणैररि-कुल-प्रध्वंसिभिः संवृतं
वन्दे तामहमक्षय्यां क्षकाराक्षररूपिणीम् ।
श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥८॥
चतुराज्ञाकोशभूतां नौमि श्रीत्रिपुरामहम् ॥१२॥
As 1 progresses, the second phase involves stabilizing this newfound recognition via disciplined practices that harness the head and senses, emphasizing the vital job of Electricity (Shakti) In this particular transformative procedure.
तरुणेन्दुनिभां वन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥२॥
दृश्या स्वान्ते सुधीभिर्दरदलितमहापद्मकोशेन तुल्ये ।
By embracing Shodashi’s teachings, men and women cultivate a daily life enriched with intent, love, and relationship to the divine. Her blessings remind devotees on the infinite elegance and knowledge that reside inside of, empowering them to Stay with check here authenticity and Pleasure.
कर्त्री लोकस्य लीलाविलसितविधिना कारयित्री क्रियाणां
The essence of those occasions lies inside the unity and shared devotion they encourage, transcending unique worship to create a collective spiritual ambiance.
षोडशी महाविद्या : पढ़िये त्रिपुरसुंदरी स्तोत्र संस्कृत में – shodashi stotram
यह साधना करने वाला व्यक्ति स्वयं कामदेव के समान हो जाता है और वह साधारण व्यक्ति न रहकर लक्ष्मीवान्, पुत्रवान व स्त्रीप्रिय होता है। उसे वशीकरण की विशेष शक्ति प्राप्त होती है, उसके अंदर एक विशेष आत्मशक्ति का विकास होता है और उसके जीवन के पाप शान्त होते है। जिस प्रकार अग्नि में कपूर तत्काल भस्म हो जाता है, उसी प्रकार महात्रिपुर सुन्दरी की साधना करने से व्यक्ति के पापों का क्षय हो जाता है, वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है और उसे समस्त शक्तियों के स्वामी की स्थिति प्राप्त होती है और व्यक्ति इस जीवन में ही मनुष्यत्व से देवत्व की ओर परिवर्तित होने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर लेता है।